मरहबा, मरहबा सादगी आपकी
दिल में घर कर गई सरवरी आपकी
आप आये तो तारीकियां छट गई
कुफ्र पर छा गई रौशनी आपकी
झुक गये आपके सामने ताजवर
देखी शाहों ने जब सरवरी आपकी
मद्हख्वां आपके सारे कुदसी हुये
और नबियों ने की पैरवी आपकी
जिसने इंसानियत को उजागर किया
ऐसी पाकीज़ा हैं ज़िन्दगी आपकी
क्या बयां मैं करूं अज़्मते मुस्तफा
कि फरिश्तें करें चाकरी आपकी
बख्श देगा खुदा उसको महशर के दिन
जिस को हासिल हुई रहबरी आपकी।
