ADMIN 04:05:04 PM 11 Dec, 2016

विधाता की सृष्टि

एक दिन देवलोक से एक सूचना निकाली गई की “फलाँ तिथी को सभी लोग अपनी असुंदर वस्तुओं के बदले चित्रगुप्त से सुंदर वस्तुएँ प्राप्त कर सकते हैं पर शर्त ये है कि उसे विधाता की सत्ता में विश्वास हो।“

निश्चित तारीख को सभी लोग अपनी असुंदर वस्तुएँ लेकर चित्रगुप्त के पास पहुँचने लगे। विधाता ने गौर किया कि क्या सभी लोग आ गये, तो पता लगा एक व्यक्ति नहीं आया है। विधाता ने उससे पूछा की “तुम चित्रगुप्त के पास अपनी असुंदर वस्तुएँ बदलने क्यों नहीं गये।“

वह व्यक्ति बोला... “विधाता की बनायी इस सृष्टि के कण-कण में वही तो व्याप्त है, फिर जबकि प्रत्येक कण में वही व्याप्त है तो कहीं भी असुंदरता कैसे हो सकती है। मुझे तो इस सृष्टि का कण-कण सुंदर दिखाई देता है।

विधाता मुस्कुराकर चित्रगुप्त से बोले.. ”वास्तव में यही व्यक्ति विधाता की सत्ता में विश्वास करता है। क्योंकि जो सृष्टि को उसके समग्र रूप में स्वीकार करता है, उसके लिये सुंदर-असुंदर का भेद समाप्त हो जाता है। और विधाता की कृपा भी उसी को प्राप्त होती है।“

वास्तव में सृष्टि अच्छे-बुरे को मिला कर बनी है। ये दोनो सृष्टि के दो पहलू हैं जिन्हें मिला कर ही संसार बनता है। संसार की प्रत्येक वस्तु मानव और उसका समाज भी भले-बुरे का मिस्रण है। अगर कोई सिर्फ अच्छे की चाह रखे तो वस्तुतः उसकी चाह ही अधूरी है। सम्पूर्णता में तो आपको दोनो को ही स्वीकार करना होगा। वैसे भी अगर सिर्फ मीठा-मीठा खाया जाय तो मीठा कडवे से भी अधिक बुरा लगने लगेगा।

अच्छे की पहचान बुरे से और बुरे की पहचान अच्छे को सामने रख कर ही की जा सकती है। अच्छा-बुरा, मीठा-तीखा, काला-सफेद ये दिखते तो एक दूसरे के विपरीत हैं पर इन्हें एक साथ रख कर ही संसार के सम्पूर्ण, सुन्दर और समग्र रूप को देखा-समझा जा सकता है।

दोनो को मिला कर संसार रचने वाले रचयिता ने हमें वास्तविक सम्पूर्णता को समझने का अवसर दिया है। अतः आइये संसार को उसकी सम्पूर्णता में स्वीकार करके रचयिता का सम्मान करें। 🌹🙏🏻सुप्रभात 🌹🙏🏻

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