ADMIN 05:30:00 AM 01 Jan, 1970

ओशो ने कई साल पहले एक प्रवचन में कहा था !

तुम जिसको पैसा समझते हो वह एक मान्यता है अगर किसी दिन सरकार बदल जाए और रातोंरात यह एलान किया जाए कि फलाँ-फलाँ नोट नहीं चलेगा तो तुम क्या करोगे ?
मान्यता को बदलने में देर कितनी लगती है ?
चंद कागज के टुकड़ों पर किसी का चित्र और हस्ताक्षर करने से वह मुद्रा बन गई और व्यवहारिक काम में आने लगी । अब मान्यता बदल गई तो वह मुद्रा दो कौड़ी की हो जाएगी
सारा खेल मान्यता का है ।
जड़ वस्तुऐं मूल्यहीन हैं । महज एक मान्यता है जिसने उन्हे मूल्यवान बना दिया है ! स्वर्ण रजत हीरे मुद्रा इनका मूल्य महज मान्यता का आरोपण है।
जिस दिन तुम जगत की मान्यताओं से मुक्त हो गये, उस दिन सब मिट्टी हो जाएगा । उस दिन तुम चेतना को उपलब्ध होगे, जो अनमोल है !

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