सज़ा लगती है मुझको ज़िन्दगी बिन तेरे जीने में !
जुदाई ज़हर है जैसे कि सावन के महीने में !
हमे आदत ही ऐसी ज़िन्दगी में हो गई अब तो !
मज़ा आता नही हमको बिना ज़ख़्मो के जीने में !!
सज़ा लगती है मुझको ज़िन्दगी बिन तेरे जीने में !
जुदाई ज़हर है जैसे कि सावन के महीने में !
हमे आदत ही ऐसी ज़िन्दगी में हो गई अब तो !
मज़ा आता नही हमको बिना ज़ख़्मो के जीने में !!
