हमारी दास्तां उसे कहां कबूल थी,
मेरी वफायें उसके लिये फिजूल थीं,
कोई आस नहीं लेकिन कोई इतना बतादो,
मैंने चाहा उसे क्या ये मेरी भूल थी।
हमारी दास्तां उसे कहां कबूल थी,
मेरी वफायें उसके लिये फिजूल थीं,
कोई आस नहीं लेकिन कोई इतना बतादो,
मैंने चाहा उसे क्या ये मेरी भूल थी।