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Afsar
12:00:00 AM 06 May, 2017
लाज़मी तो नहीं तुझे नज़रों ही से देखूँ हर रोज़
तेरी यादों का अहसास किसी दीदार से कम तो नहीं
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#40317 Afsar
12:00:00 AM 28 Jul, 2017
इश्क का होना भी लाजमी है शायरी के लिये..
कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी ग़ालिब होता।
एक ताबीज़.. तेरी-मेरी दोस्ती को भी चाहिए..
थोड़ी सी दिखी नहीं कि नज़र लगने लगती हैं।
भरी महफ़िल मे दोस्ती का जिक्र हुआ, हमने तो..
सिर्फ़ आप की ओर देखा और लोग वाह-वाह कहने लगे।
मिट जाते है औरों को मिटाने वाले
लाश कहा रोती है, रोते है जलाने वाले।
वक़्त के भी अजीब किस्से है..
किसी का कटता नही और, किसी के पास होता नही।
आँसू वो खामोश दुआ है
जो सिर्फ़ खुदा ही सुन सकता है।
वो किताबों में दर्ज था ही नहीं,
जो सबक सीखाया जिंदगी ने।
यहाँ सब खामोश है कोई आवाज़ नहीं करता..
सच बोलकर कोई, किसी को नाराज़ नहीं करता।
सुनो, रिश्तों को बस इस तरह बचा लिया करो,
कभी मान लिया करो, कभी मना लिया करो..!!
यूँ तो जिंदगी तेरे सफर से शिकायतें बहुत थी,
दर्द जब दर्ज कराने पहुंचे तो कतारें बहुत थी!!