ज़ंजीर से उठती है सदा सहमी हुई सी;
जारी है अभी गर्दिश-ए-पा सहमी हुई सी;
दिल टूट तो जाता है पे गिर्या नहीं करता;
क्या डर है के रहती है वफ़ा सहमी हुई सी;
उठ जाए नज़र भूल के गर जानिब-ए-अफ़्लाक;
होंटों से निकलती है दुआ सहमी हुई सी;
हाँ हँस लो रफ़ीक़ो कभी देखी नहीं तुम ने;
नम-नाक निगाहों में हया सहमी हुई सी;
तक़सीर कोई हो तो सज़ा उम्र का रोना;
मिट जाएँ वफ़ा में तो जज़ा सहमी हुई सी;
है 'अर्श' वहाँ आज मुहीत एक ख़ामोशी;
जिस राह से गुज़री थी क़ज़ा सहमी हुई सी।
