Afsar 12:00:00 AM 13 Jun, 2017

रेत की सूरत जाँ प्यासी थी
आँख हमारी नम न हुई;

तेरी दर्द-गुसारी से भी
रूह की उलझन कम न हुई;

शाख़ से टूट के बे-हुरमत हैं
वैसे बे-हुरमत थे;

हम गिरते पत्तों पे मलामत कब
मौसम मौसम न हुई;

नाग-फ़नी सा शोला है
जो आँखों में लहराता है;

रात कभी हम-दम न बनी
और नींद कभी मरहम न हुई;

अब यादों की धूप छाँव में
परछाईं सा फिरता हूँ;

मैंने बिछड़ कर देख लिया है
दुनिया नरम क़दम न हुई;

मेरी सहरा-ज़ाद मोहब्बत अब्र-
ए-सियह को ढूँडती है;

एक जनम की प्यासी थी
इक बूँद से ताज़ा-दम न हुई।

Related to this Post: