Afsar 12:00:00 AM 13 Jun, 2017

ये किसने गला घोंट दिया जिन्दादिली का,
चेहरे पे हँसी है कि जनाजा है हँसी का;

हर हुस्न में उस हुस्न की हल्की सी झलक है,
दीदार का हक मुझको है जल्वा हो किसी का;

रक्साँ है कोई हूर कि लहराती है सहबा,
उड़ना कोई देखे मिरे शीशे की परी का;

जब रात गले मिलके बिछड़ती है सहर से,
याद आता है मंजर तेरी रूखसत की घड़ी का;

उन आँखों के पैमानों से छलकी जो जरा सी,
मैखाने में होश उड़ गया शीशे की परी का;

रूस्वा है 'नजीर' अपने ही बुतखाने की हद में,
दीवाना अगर है तो बनारस की गली का।

Related to this Post: