Afsar 12:00:00 AM 13 Jun, 2017

कोई मुझ सा मुस्तहके़-रहमो-ग़मख़्वारी नहीं,
सौ मरज़ है और बज़ाहिर कोई बीमारी नही;

इश्क़ की नाकामियों ने इस तरह खींचा है तूल,
मेरे ग़मख़्वारों को अब चाराये-ग़मख़्वारी नही।

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