पहले सौ बार इधर और उधर देखा है;
तब कहीं डर के तुम्हें एक नज़र देखा है;
हम पे हँसती है जो दुनियाँ उसे देखा ही नहीं;
हम ने उस शोख को अए दीदा-ए-तर देखा है;
आज इस एक नज़र पर मुझे मर जाने दो;
उस ने लोगों बड़ी मुश्किल से इधर देखा है;
क्या ग़लत है जो मैं दीवाना हुआ, सच कहना;
मेरे महबूब को तुम ने भी अगर देखा है।
