Rakesh 12:00:00 AM 13 May, 2017

जख़्म अभी हरे हैं अम्मा
मत कुरेदो इन्हें
पक जाने दो
लल्ली के बापू की कच्ची दारू
जैसे पक जाया करती है भट्टी में।

दाग़ अभी गहरे हैं बाबा
मत कुरेदो
इन्हें सूख जाने दो
रामकली के जूड़े में
लगे फूल की तरह।

जख़्म अभी गहरे हैं बाबा
छिपकली की कटी पूंछ की तरह
हो जाने दो कई-कई
रंगों में परिवर्तित।

क्षणभर तो रुको बाबा
झाँक लूँ अपने ही भीतर
बिछा लूँ
गुलाबी चादर से सज़ा बिस्तर
लगा लूँ सुर्ख़ गुलाब-सा तकिया
और रख लूँ
सिरहाने पानी की सुराही
और मद्धिम-मद्धिम आँच
पर जलती सुर्ख़
अंगीठी।

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