arman 12:00:00 AM 13 May, 2017

इन दिनों ख़ुद से फ़राग़त ही फ़राग़त है मुझे
इश्क़ भी जैसे कोई ज़ेहनी सहूलत है मुझे

मैं ने तुझ पर तेरे हिज्राँ को मुक़द्दम जाना
तेरी जानिब से किसी रंज की हसरत है मुझे

ख़ुद को समझाऊँ के दुनिया की ख़बर-गीरी करूँ
इस मोहब्बत में कोई एक मुसीबत है मुझे

दिल नहीं रखता किसी और तमन्ना की हवस
ऐसा हो पाए तो क्या इस में क़बाहत है मुझे

एक बे-नाम उदासी से भरा बैठा हूँ
आज जी खोल के रो लेने की हाजत है मुझे

Related to this Post: