कहाँ तक आँख रोएगी कहाँ तक किसका ग़म होगा;
मेरे जैसा यहाँ कोई न कोई रोज़ कम होगा;
तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना रो चुका हूँ मैं;
कि तू मिल भी अगर जाये तो अब मिलने का ग़म होगा;
समंदर की ग़लतफ़हमी से कोई पूछ तो लेता;
ज़मीन का हौसला क्या ऐसे तूफ़ानों से कम होगा;
मोहब्बत नापने का कोई पैमाना नहीं होता;
कहीं तू बढ़ भी सकता है, कहीं तू मुझ से कम होगा।
