arman 12:00:00 AM 15 Jul, 2017

ये दिल में वसवसा क्या पल रहा है;
तेरा मिलना भी मुझ को खल रहा है;

जिसे मैंने किया था बे-ख़ुदी में;
जबीं पर अब वो सजदा जल रहा है;

मुझे मत दो मुबारक-बाद-ए-हस्ती;
किसी का है ये साया चल रहा है;

सर-ए-सहरा सदा दिल के शजर से;
बरसता दूर एक बादल रहा है;

फ़साद-ए-लग़्ज़िश-ए-तख़लीक़-ए-आदम;
अभी तक हाथ यज़दाँ मल रहा है;

दिलों की आग क्या काफ़ी नहीं है;
जहन्नम बे-ज़रूरत जल रहा है।

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