Afsar 12:00:00 AM 15 Jul, 2017

मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा;
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा;

ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा;
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा;

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा;
कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा;

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए;
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा;

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे;
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा;

हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता वसीम;
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा।

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