उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर-मंतर सब;
चाक़ू-वाक़ू, छुरियाँ-वुरियाँ, ख़ंजर-वंजर सब;
जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं;
चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब;
मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है;
फीके पड़ गए कपड़े-वपड़े, ज़ेवर-वेवर सब;
आखिर मै किस दिन डूबूँगा फ़िक्रें करते है;
कश्ती-वश्ती, दरिया-वरिया लंगर-वंगर सब।
