arman 12:00:00 AM 15 Jul, 2017

क्या कहिये किस तरह से जवानी गुज़र गई;
बदनाम करने आई थी बदनाम कर गई;

क्या क्या रही सहर को शब-ए-वस्ल की तलाश;
कहता रहा अभी तो यहीं थी किधर गई;

रहती है कब बहार-ए-जवानी तमाम उम्र;
मानिन्दे-बू-ए-गुल इधर आयी उधर गई;

नैरंग-ए-रोज़गार से बदला न रंग-ए-इश्क़;
अपनी हमेशा एक तरह पर गुज़र गई।

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