गुलों को छू के शमीम-ए-दुआ नहीं आई;
खुला हुआ था दरीचा सबा नहीं आई;
हवा-ए-दश्त अभी तो जुनूँ का मौसम था;
कहाँ थे हम तेरी आवाज़ नहीं आई।
गुलों को छू के शमीम-ए-दुआ नहीं आई;
खुला हुआ था दरीचा सबा नहीं आई;
हवा-ए-दश्त अभी तो जुनूँ का मौसम था;
कहाँ थे हम तेरी आवाज़ नहीं आई।