Afsar 12:00:00 AM 15 Jun, 2017

गुलों को छू के शमीम-ए-दुआ नहीं आई;
खुला हुआ था दरीचा सबा नहीं आई;

हवा-ए-दश्त अभी तो जुनूँ का मौसम था;
कहाँ थे हम तेरी आवाज़ नहीं आई।

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