Rakesh 12:00:00 AM 15 Jun, 2017

ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था;
फ़ज़ा में उड़ते परिंदे शुमार करता था;

बयान करता था दरिया के पार के क़िस्से;
ये और बात वो दरिया न पार करता था;

बिछड़ के एक ही बस्ती में दोनों ज़िंदा हैं;
मैं उस से इश्क़ तो वो मुझ से प्यार करता था;

यूँ ही था शहर की शख़्सियतों को रंज उस से;
कि वो ज़िदें भी बड़ी पुर-वक़ार करता था;

कल अपनी जान को दिन में बचा नहीं पाया;
वो आदमी के जो आहाट पे वार करता था;

सदाक़तें थीं मेरी बंदगी में जब 'अज़हर';
हिफ़ाज़तें मेरी परवर-दिगार करता था।

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