आफत की शोख़ियां हैं तुम्हारी निगाह में;
मेहशर के फितने खेलते हैं जल्वा-गाह में;
वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं;
मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी कि निगाह में;
आती है बात बात मुझे याद बार बार;
कहता हूं दौड़ दौड़ के कासिद से राह में;
इस तौबा पर है नाज़ मुझे ज़ाहिद इस कदर;
जो टूट कर शरीक हूँ हाल-ए-तबाह में;
मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमंद थे;
ऐ 'दाग़' तुम तो बैठ गये एक आह में।
