अपने पहाड़ ग़ैर के गुलज़ार हो गये;
वे भी हमारी राह की दीवार हो गये;
फल पक चुका है शाख़ पर गर्मी की धूप में;
हम अपने दिल की आग में तैयार हो गये;
हम पहले नर्म पत्तों की इक शाख़ थे मगर;
काटे गये हैं इतने कि तलवार हो गये;
बाज़ार में बिकी हुई चीजों की माँग है;
हम इस लिये ख़ुद अपने ख़रीदार हो गये;
ताजा लहू भरा था सुनहरे गुलाब में;
इन्कार करने वाले गुनहगार हो गये;
वो सरकशों के पाँव की ज़ंजीर थे कभी;
अब बुज़दिलों के हाथ में तलवार हो गये।
