Afsar 12:00:00 AM 15 Jun, 2017

कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का;
आँख साकी की उठे नाम हो पैमाने का;

गर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालों;
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का;

चश्म-ए-साकी मुझे हर गाम पे याद आती है;
रास्ता भूल न जाऊँ कहीं मैख़ाने का;

अब तो हर शाम गुज़रती है उसी कूचे मे;
ये नतीजा हुआ ना से तेरे समझाने का;

मंज़िल-ए-ग़म से गुज़रना तो है आसाँ 'इक़बाल';
इश्क है नाम ख़ुद अपने से गुज़र जाने का।

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