गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे;
गुज़रूँ जो उस गली से तो ठण्डी हवा लगे;
मेहमान बनके आए किसी रोज़ अगर वो शख्स;
उस रोज़ बिन सजाए मेरा घर सजा लगे;
मैं इसलिए मनाता नहीं वस्ल की खुशी;
मेरे रकीब की न मुझे बददुआ लगे;
वो कहत दोस्ती का पड़ा है कि इन दिनों;
जो मुस्कुरा के बात करे आशना लगे;
तर्क-ए-वफ़ा के बाद ये उसकी अदा 'कतील';
मुझको सताए कोई तो उसको बुरा लगे।
