Afsar 12:00:00 AM 15 Jun, 2017

गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे;
गुज़रूँ जो उस गली से तो ठण्डी हवा लगे;

मेहमान बनके आए किसी रोज़ अगर वो शख्स;
उस रोज़ बिन सजाए मेरा घर सजा लगे;

मैं इसलिए मनाता नहीं वस्ल की खुशी;
मेरे रकीब की न मुझे बददुआ लगे;

वो कहत दोस्ती का पड़ा है कि इन दिनों;
जो मुस्कुरा के बात करे आशना लगे;

तर्क-ए-वफ़ा के बाद ये उसकी अदा 'कतील';
मुझको सताए कोई तो उसको बुरा लगे।

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