Afsar 12:00:00 AM 15 Jun, 2017

बुझी नज़र तो करिश्मे भी
रोज़-ओ-शब के गये;

कि अब तलक नही पलटे हैं
लोग कब के गये;

करेगा कौन तेरी
बेवफ़ाइयों का गिला;

यही है रस्म-ए-ज़माना
तो हम भी अब के गये;

मगर किसी ने हमे
हमसफ़र नही जाना;

ये और बात कि हम
साथ साथ सब के गये;

अब आये हो तो यहाँ क्या है
देखने के लिये;

ये शहर कब से है
वीरां वो लोग कब के गये;

गिरफ़्ता दिल थे मगर
हौसला नही हारा;

गिरफ़्ता दिल हैं मगर
हौसले भी अब के गये;

तुम अपनी शम-ए-तमन्ना को
रो रहे हो 'फ़राज़';

इन आँधियों मे तो प्यार-
ए-चिराग सब के गये।

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