Afsar 12:00:00 AM 15 Jun, 2017

जब रूख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा;
बन के हर ज़र्रा आफ़्ताब उठा;

डूबी जाती है ज़ब्त की कश्ती;
दिल में तूफ़ान-ए-इजि़्तराब उठा;

मरने वाले फ़ना भी पर्दा है;
उठ सके गर तो ये हिजाब उठा;

हम तो आँखों का नूर खो बैठे;
उन के चेहरे से क्या नक़ाब उठा;

आलम-ए-हुस्न-ए-सादगी तौबा;
इश्क़ खा खा के पेच-ओ-ताब उठा;

होश नक़्स-ए-ख़ुदी है ऐ 'एहसान';
ला उठा शीशा-ए-शराब उठा।

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