arman 12:00:00 AM 16 Jul, 2017

उलझाव का मज़ा भी तेरी बात ही में था;
तेरा जवाब तेरे सवालात ही में था;

साया किसी यक़ीं का भी जिस पर न पड़ सका;
वो घर भी शहर-ए-दिल के मुज़ाफ़ात ही में था;

इलज़ाम क्या है ये भी न जाना तमाम उम्र;
मुल्ज़िम तमाम उम्र हवालात ही में था;

अब तो फ़क़त बदन की मुरव्वत है दरमियाँ;
था रब्त जान-ओ-दिल का तो शुरूआत ही में था;

मुझ को तो क़त्ल करके मनाता रहा है जश्न;
वो ज़िलिहाज़ शख़्स मेरी ज़ात ही में था।

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