हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए;
चिरागों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए;
मैं ख़ुद भी एहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ;
कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए;
अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर;
मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए;
समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको;
हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए;
मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा;
परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए;
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो;
न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए।
