मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग;
मैंने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात;
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है;
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात;
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है;
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है;
तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये;
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये;
और भी दुःख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा;
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा।
