Afsar 12:00:00 AM 16 Jul, 2017

मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग;
मैंने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात;

तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है;
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात;

तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है;
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है;

तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये;
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये;

और भी दुःख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा;
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा।

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