खुलता नहीं है हाल किसी पर कहे बग़ैर;
पर दिल की जान लेते हैं दिलबर कहे बग़ैर;
मैं कैसे कहूँ तुम आओ कि दिल की कशिश से वो;
आयेँगे दौड़े आप मेरे घर कहे बग़ैर;
क्या ताब क्या मजाल हमारी कि बोसा लें;
लब को तुम्हारे लब से मिलाकर कहे बग़ैर;
बेदर्द तू सुने ना सुने लेक दर्द-ए-दिल;
रहता नहीं है आशिक़-ए-मुज़तर कहे बग़ैर;
तकदीर के सिवा नहीं मिलता कहीं से भी;
दिलवाता ऐ "ज़फ़र" है मुक़द्दर कहे बग़ैर।
