इश्क़ को तक़लीद से आज़ाद कर;
दिल से गिरया आँख से फ़रियाद कर;
बाज़ आ ऐ बंदा-ए-हुस्न मिज़ाज़;
यूँ न अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर;
ऐ ख़यालों के मकीं नज़रों से दूर;
मेरी वीराँ ख़ल्वतें आबाद कर;
हुस्न को दुनिया की आँखों से न देख;
अपनी इक तर्ज़-ए-नज़र ईजाद कर;
इशरत-ए-दुनिया है इक ख़्वाब-ए-बहार;
काबा-ए-दिल दर्द से आबाद कर;
अब कहाँ 'एहसान' दुनिया में वफ़ा;
तौबा कर नादाँ ख़ुदा को याद कर।
