arman 12:00:00 AM 16 Jul, 2017

ख़ुद को औरों की तवज्जो का तमाशा न करो;
आइना देख लो, अहबाब से पूछा न करो;

वह जिलाएंगे तुम्हें शर्त बस इतनी है कि तुम;
सिर्फ जीते रहो, जीने की तमन्ना न करो;

जाने कब कोई हवा आ के गिरा दे इन को;
पंछियो ! टूटती शाख़ों पे बसेरा न करो;

आगही बंद नहीं चंद कुतुब-ख़ानों में;
राह चलते हुए लोगों से भी याराना करो;

चारागर छोड़ भी दो अपने मरज़ पर हम को;
तुम को अच्छा जो न करना है, तो अच्छा न करो;

शेर अच्छे भी कहो, सच भी कहो, कम भी कहो;
दर्द की दौलते-नायाब को रुसवा न करो।

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