ख़ुद को औरों की तवज्जो का तमाशा न करो;
आइना देख लो, अहबाब से पूछा न करो;
वह जिलाएंगे तुम्हें शर्त बस इतनी है कि तुम;
सिर्फ जीते रहो, जीने की तमन्ना न करो;
जाने कब कोई हवा आ के गिरा दे इन को;
पंछियो ! टूटती शाख़ों पे बसेरा न करो;
आगही बंद नहीं चंद कुतुब-ख़ानों में;
राह चलते हुए लोगों से भी याराना करो;
चारागर छोड़ भी दो अपने मरज़ पर हम को;
तुम को अच्छा जो न करना है, तो अच्छा न करो;
शेर अच्छे भी कहो, सच भी कहो, कम भी कहो;
दर्द की दौलते-नायाब को रुसवा न करो।
