मेरे क़ाबू में न पहरों दिल-ए-नाशाद आया;
वो मेरा भूलने वाला जो मुझे याद आया;
दी मुअज्जिन ने शब-ए-वस्ल अज़ान पिछली रात;
हाए कम-बख्त के किस वक्त ख़ुदा याद आया;
लीजिए सुनिए अब अफ़साना-ए-फुर्कत मुझ से;
आप ने याद दिलाया तो मुझे याद आया;
आप की महिफ़ल में सभी कुछ है मगर 'दाग़' नहीं'
मुझ को वो ख़ाना-ख़राब आज बहुत याद आया।
