arman 12:00:00 AM 16 Jun, 2017

​​क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं​;​
​​दोस्ती तो उदास करती नहीं​;​
​​
​​हम हमेशा के सैर-चश्म सही​;​
​​तुझ को देखें तो आँख भरती नहीं​;​
​​
​​शब-ए-हिज्राँ भी रोज़-ए-बद की तरह​;​
​​कट तो जाती है पर गुज़रती नहीं​;
​​
​​ये मोहब्बत है, सुन, ज़माने, सुन​;​
​​ इतनी आसानियों से मरती नहीं​;

​जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़​;
​जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं​।

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