Afsar 12:00:00 AM 16 Jun, 2017

हस्ती अपनी हुबाब की सी है​;​
ये नुमाइश सराब की सी है​;​

​नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए​;​
हर एक पंखुड़ी गुलाब की सी है​;

चश्मे-दिल खोल इस भी आलम पर​​;​
याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है​;​​

​​बार-बार उस के दर पे जाता हूँ​;​
हालत अब इज्तेराब की सी ​है;​

​​ मैं जो बोला कहा के ये आवाज़​ ;​
​ उसी ख़ाना ख़राब की सी​;​
​​
​​ 'मीर' उन नीमबाज़ आँखों में​;
​ सारी मस्ती शराब की सी है।

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