ADMIN 12:00:00 AM 16 Jun, 2017

लौट के उसी दो राहे पर बार-बार पहुँचा;
मैं कहीं भी पहुंचा बस बेकार पहुंचा;

सारी रात गुज़ार दी चंद लफ़्ज़ों के साथ;
मेरे सवाल से पहले उनका इनकार पहुँचा;
मैं कहीं भी...

रूह की गहराईयों में राह तकती आंखें;
जहाँ तू नहीं पहुँचा वहाँ इंतज़ार पहुँचा;
मैं कहीं भी...

होश न आया फिर होश जाने के बाद;
मैं गया किधर भी मगर कूचा ए यार पहुँचा;
मैं कहीं भी...

डूब के जाना है ये तो मालूम था 'वीर';
नज़र नहीं आता जहाँ कोई मैं उस पार पहुँचा;
मैं कहीं भी...

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