लौट के उसी दो राहे पर बार-बार पहुँचा;
मैं कहीं भी पहुंचा बस बेकार पहुंचा;
सारी रात गुज़ार दी चंद लफ़्ज़ों के साथ;
मेरे सवाल से पहले उनका इनकार पहुँचा;
मैं कहीं भी...
रूह की गहराईयों में राह तकती आंखें;
जहाँ तू नहीं पहुँचा वहाँ इंतज़ार पहुँचा;
मैं कहीं भी...
होश न आया फिर होश जाने के बाद;
मैं गया किधर भी मगर कूचा ए यार पहुँचा;
मैं कहीं भी...
डूब के जाना है ये तो मालूम था 'वीर';
नज़र नहीं आता जहाँ कोई मैं उस पार पहुँचा;
मैं कहीं भी...
