Aman 12:00:00 AM 17 Feb, 2017

"मेरे ख़्यालों की राहगुज़र से
वो गुज़रता रहा..
वक़्त का क्या है
वो गुज़रते गुज़रते गुज़रता रहा..

फासला रखने की हसरत
उसे इतनी परवान चढ़ी..
हर फ़ैसले पर वो अपनी
दीवार क़ी चाहत रखता रहा..

कई बार सोचा
उसकी बुनियाद का
पत्थर ही बन जाऊँ..
लेकिन
हर पत्थर पर
वो ठोकर अपनी रखता रहा..

मेरे ख़्यालों की रहगुज़र से
वो गुज़रता रहा..
वक़्त का क्या है
वो गुज़रते गुज़रते गुज़रता रहा.!"

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