_उठ जाता हूं..भोर से पहले..सपने सुहाने नही आते.._
_अब मुझे स्कूल न जाने वाले..बहाने बनाने नही आते.._
_कभी पा लेते थे..घर से निकलते ही..मंजिल को.._
_अब मीलों सफर करके भी...ठिकाने नही आते.._
_मुंह चिढाती है..खाली जेब..महीने के आखिर में.._
_अब बचपन की तरह..गुल्लक में पैसे बचाने नही आते.._
_यूं तो रखते हैं..बहुत से लोग..पलको पर मुझे.._
_मगर बेमतलब बचपन की तरह गोदी उठाने नही आते.._
_माना कि..जिम्मेदारियों की..बेड़ियों में जकड़ा हूं.._
_क्यूं बचपन की तरह छुड़वाने..वो दोस्त पुराने नही आते.._
_बहला रहा हूं बस दिल को बच्चों की तरह.._
_मैं जानता हूं..फिर वापस बीते हुए जमाने नही आते..
🌹हँसते रहिये हंसाते रहिये🌹
🌹सदा मुस्कुराते रहिये🌹
