Afsar 12:00:00 AM 17 Jul, 2017

दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा;
यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें;

थक-थक के हर मक़ाम पे दो चार रह गये;
तेरा पता न पायें तो नाचार क्या करें;

क्या शमा के नहीं है हवाख़्वाह अहल-ए-बज़्म;
हो ग़म ही जांगुदाज़ तो ग़मख़्वार क्या करें।

Related to this Post: