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Afsar
12:00:00 AM 17 Jul, 2017
फ़राज़' अब कोई सौदा कोई जुनूं भी नहीं;
मगर क़रार से दिन कट रहे हों, यूं भी नहीं।
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#29895 arman
12:00:00 AM 16 Jun, 2017
फ़राज़' अब कोई सौदा कोई जुनूं भी नहीं;
मगर क़रार से दिन कट रहे हों, यूं भी नहीं।
#29912 arman
12:00:00 AM 16 Jun, 2017
बदन में आग सी चेहरा गुलाब जैसा है;
के ज़हरे-ग़म का नशा भी शराब जैसा है;
कहाँ वो कुर्ब के अब तो ये हाल है जैसे;
तेरे फिराक का आलम भी ख्वाब जैसा है;
इसे कभी कोई देखे कोई पढे तो सही;
दिल आइना है तो चेहरा किताब जैसा है;
'फ़राज़' संगे-मलामत से ज़ख्म-ज़ख्म सही;
हमें अज़ीज़ है, खानाखाराब, जैसा है।
#36225 Afsar
12:00:00 AM 17 Jul, 2017
बदन में आग सी चेहरा गुलाब जैसा है;
के ज़हरे-ग़म का नशा भी शराब जैसा है;
कहाँ वो कुर्ब के अब तो ये हाल है जैसे;
तेरे फिराक का आलम भी ख्वाब जैसा है;
इसे कभी कोई देखे कोई पढे तो सही;
दिल आइना है तो चेहरा किताब जैसा है;
'फ़राज़' संगे-मलामत से ज़ख्म-ज़ख्म सही;
हमें अज़ीज़ है, खानाखाराब, जैसा है।