मैं आप लोगों की दी हुई;
मुहब्बत पर इठलाता हूँ;
इतने दिलों में रहता हूँ कि;
घर का पता भूल जाता हूँ;
नहीं हुनर किसी में मेरे जैसा;
लोगों को उंगलियो पर नाचता हूँ;
कुछ लोग मुझे फरिश्ता कहते है;
नफरत के स्कूलों में मुहब्बत पढता हूँ;
खुशियों के बाज़ार में दूकान सजी है;
आवाज लगा कर सौदागरों को बुलाता हूँ;
नहीं यकीं तो तु मुझसे मिलकर देख;
मैं तुझे कैसे अपना बनता हूँ।
