Reena 12:00:00 AM 20 Jan, 2018

बिकती हैं ना ख़ुशी कहीं, ना कहीं गम बिकता हैं...
लोग गलतफहमी में हैं की शायद कहीं मरहम बिकता हैं...
इंसान ख्वाइशों से बंधा हुआ एक जिद्दी परिंदा है...
उम्मीदों से ही घायल हैं और उम्मीदों पर ही जिंदा हैं।

Related to this Post: