ADMIN 05:30:00 AM 01 Jan, 1970

"तुझे यूँ रखूँगा....."
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_मैं शाम की तरह रहा तो तुझे भोर की तरह रखूँगा_
_मेरे हमदम तुझे हरदम खास दोस्त की तरह रखूँगा_

_तुम मेरे आसरे थिरकना मैं तेरी पुकार पर उमडूंगा_
_मैं बादल की तरह रहा तो तुझे मोर की तरह रखूँगा_

_लड़खड़ाता रहूँगा तेरा नाम लेकर बड़बड़ाता रहूँगा_
_मैं नशे की हालत में भी तुझे होश की तरह रखूँगा_

_तुझे पिघला दिया करूंगा तुझे जमा दिया करूंगा_
_मैं आंच की तरह रहा तो तुझे मोम की तरह रखूँगा_

_मुझे छूने का हक दूँगा, मुझसे छूट के जाने का नही_
_मैं पत्तों की तरह रहा तो तुझे ओस की तरह रखूँगा_

_हम रेत छूकर भागेंगे हम मिलकर चट्टाने नहलायेंगें_
_मैं सागर का रूप लेकर तुझे हिलोर की तरह रखूँगा_

_जैसे कोई चिड़िया आईने पर चोंच मारती रहती है_
_मैं मन का अक्स बनाकर तुझे मोह की तरह रखूँगा_

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✍ कवि अवतार सिंह
©13.1.17

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