ग़ज़ल - गम
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_वो कोई और होंगे जो गम को खजाना समझते है_
_हम तो मुनासिब इस सामान को लुटाना समझते है_
_रखी हुई जरूर है मगर ये चीज रखने जैसी नही है_
_हम तो ठीक नही घर में इसका ठिकाना समझते है_
_बहुत कड़वा धुंआ उठता है, इस दर्द ए कबाड़ से_
_मगर फिर भी वाजिब हम इसे जलाना समझते है_
_ये कमबख्त सीखता क्यों नही मेरे दिल से अच्छाई_
_हम सरासर गलत किसी दिल को सताना समझते है_
_कब समझेगा इसको नजरअंदाज किया जा रहा है_
_हम एक बोझ जैसा इससे रिश्ता निभाना समझते है_
_छोटी छोटी बातों पर खामोशी हमसे झगड़ बैठती है_
_हम उससे बहस करना बात बेकार बढ़ाना समझते है_
_जो मैं न मुस्कुराऊँ तो लबों से उतार फेक दी जाऊँगी_
_लोग शायरी का मकसद भी दिल बहलाना समझते है_
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✍ अवतार सिंह
🗓 28/12/16
