(9 नवम्बर 2016 से 500-1000 के नोटों का
प्रचलन बंद होने की मार्मिक घटना से
विचलित पत्नी के शब्द कविता के माध्यम से )
सब्जी-चीनी-दूध से, बचा के सौ-सौ ग्राम |
महंगाई की दाल में,ले मोदी का नाम ||
बड़े जतन से बांधकर,रखे थे कुछ नोट |
पता नहीं था मोदी जी की, नियति में इतना खोट ||
माँ के शगुन, पिता की दुआएँ, उठी अचानक बोल |
भैया के बंद लिफाफे की,पल में खुल गयी पोल ||
कुछ डिब्बे में बंद पड़े थे, कुछ बिस्तर के नीचे |
झाड़-झाड़ अब ढूढ़ रहे है, गद्दे और गलीचे ||
पतियों की बल्ले-बल्ले, पत्नी है लाचार |
महिलाओं का ख्याल नही, यह कैसी सरकार ?
काले धन के दुश्मनों से, ऐसे निपटा जाय |
गेहूँ के संग घुन पिसे, तो यह कैसा न्याय ?
मर्दों की सरकार सुन रही, औरत है असहाय |
घर में ही कर लें समझौता, केवल एक उपाय ||
