ADMIN 05:30:00 AM 01 Jan, 1970

तुझे फ़कीर कहूँ या गंगा ?
दस लखिया कहूँ या नंगा ?
तुझे भाषणवीर कहुं या दंगा ?
तेरे रूप अनेक हैं भाया
तू बहुरूपिया है रंग बिरंगा !!

जहां हंसने की बारी है, वहां तू रोने लग जाये !
जहां रुकने की ज़रूरत है, वहां जाने से कतराये !
जहां भाषण की नहीं ज़रूरत वहां तू जोर से चिल्लाये !
जहां भाषण की ज़रूरत हैं, वहां जाने से घबराये !

तेरी लीला अजब निराली
सबकी जेबें करदी खाली
वोटों से ज्यादा पड रही गाली
तेरे भाईयो बहनो से जनता घबराई
90 साल की मां लाइन में लगवाई...

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