तुझे फ़कीर कहूँ या गंगा ?
दस लखिया कहूँ या नंगा ?
तुझे भाषणवीर कहुं या दंगा ?
तेरे रूप अनेक हैं भाया
तू बहुरूपिया है रंग बिरंगा !!
जहां हंसने की बारी है, वहां तू रोने लग जाये !
जहां रुकने की ज़रूरत है, वहां जाने से कतराये !
जहां भाषण की नहीं ज़रूरत वहां तू जोर से चिल्लाये !
जहां भाषण की ज़रूरत हैं, वहां जाने से घबराये !
तेरी लीला अजब निराली
सबकी जेबें करदी खाली
वोटों से ज्यादा पड रही गाली
तेरे भाईयो बहनो से जनता घबराई
90 साल की मां लाइन में लगवाई...
