ADMIN 05:30:00 AM 01 Jan, 1970

संस्कृत की क्लास मे गुरूजी ने पूछ
पप्पू इस श्लोक का अर्थ बताओ.

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन".

पप्पू = राधिका शायद रस्ते मे फल बेचने का काम कर रही है.😎


गुरूजी = मूर्ख, ये अर्थ नही होता है. चल इसका अर्थ बता:-

"बहुनि मे व्यतीतानि, जन्मानि तव चार्जुन."

पप्पू = मेरी बहू के कई बच्चे पैदा हो चुके हैं,
सभी का जन्म चार जून को हुआ है.😬😑

गुरूजी = अरे गधे,
संस्कृत पढता है कि घास चरता है.
अब इसका अर्थ बता:-

"दक्षिणे लक्ष्मणोयस्य वामे तू जनकात्मजा."

पप्पू = दक्षिण मे खडे होकर लक्ष्मण बोला
जनक आजकल तो तू बहुत मजे मे है.

गुरूजी = अरे पागल, तुझे १ भी श्लोक का अर्थ नही मालूम है क्या ?

पप्पू = मालूम है ना.

गूरूजी = तो आखरी बार पूछता हूँ इस श्लोक का सही सही अर्थ बताना.-

हे पार्थ त्वया चापि मम चापि.......!
क्या अर्थ है जल्दी से बता.

पप्पू = महाभारत के युद्ध मे
श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कह रहे हैं कि........

गुरूजी उत्साहित होकर बीच मे ही कहते हैं
हाँ, शाबास, बता क्या कहा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से........?

पप्पू =

भगवान बोले = अर्जुन तू भी चाय पी ले, मैं भी चाय पी लेता हूँ
फिर युद्ध करेंगे.

गुरूजी बेहोश..............
😅😅😅😀😀😀😀😝😜😛

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