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Afsar
12:00:00 AM 02 May, 2017
ऐसे हिज्र के मौसम अब कब आते हैं
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं
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#28624 Afsar
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
ऐसे हिज्र के मौसम अब कब आते हैं;
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं;
जज़्ब करे क्यों रेत हमारे अश्कों को;
तेरा दामन तर करने अब आते हैं;
अब वो सफ़र की ताब नहीं बाक़ी वरना;
हम को बुलावे दश्त से जब-तब आते हैं;
जागती आँखों से भी देखो दुनिया को;
ख़्वाबों का क्या है वो हर शब आते हैं;
काग़ज़ की कश्ती में दरिया पार किया;
देखो हम को क्या-क्या करतब आते हैं।
#28744 Afsar
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
कहीं से कोई हर्फ़-ए-मोतबर शायद न आए;
मुसाफ़िर लौट कर अब अपने घर शायद न आए;
क़फ़स में आब-ओ-दाने की फ़रावानी बहुत है;
असीरों को ख़याल-ए-बाल-ओ-पर शायद न आए;
किसे मालूम अहल-ए-हिज्र पर ऐसे भी दिन आएँ;
क़यामत सर से गुज़रे और ख़बर शायद न आए;
जहाँ रातों को पड़े रहते हैं आँखें मूँद कर लोग;
वहाँ महताब में चेहरा नज़र शायद न आए;
कभी ऐसा भी दिन निकले के जब सूरज के हम-राह;
कोई साहिब-नज़र आए मगर शायद न आए;
सभी को सहल-अंगारी हुनर लगने लगी है;
सरों पर अब ग़ुबार-ए-रह-गुज़र शायद न आए।
#34919 arman
12:00:00 AM 15 Jul, 2017
ऐसे हिज्र के मौसम अब कब आते हैं;
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं;
जज़्ब करे क्यों रेत हमारे अश्कों को;
तेरा दामन तर करने अब आते हैं;
अब वो सफ़र की ताब नहीं बाक़ी वरना;
हम को बुलावे दश्त से जब-तब आते हैं;
जागती आँखों से भी देखो दुनिया को;
ख़्वाबों का क्या है वो हर शब आते हैं;
काग़ज़ की कश्ती में दरिया पार किया;
देखो हम को क्या-क्या करतब आते हैं।
#35042 Afsar
12:00:00 AM 16 Jul, 2017
कहीं से कोई हर्फ़-ए-मोतबर शायद न आए;
मुसाफ़िर लौट कर अब अपने घर शायद न आए;
क़फ़स में आब-ओ-दाने की फ़रावानी बहुत है;
असीरों को ख़याल-ए-बाल-ओ-पर शायद न आए;
किसे मालूम अहल-ए-हिज्र पर ऐसे भी दिन आएँ;
क़यामत सर से गुज़रे और ख़बर शायद न आए;
जहाँ रातों को पड़े रहते हैं आँखें मूँद कर लोग;
वहाँ महताब में चेहरा नज़र शायद न आए;
कभी ऐसा भी दिन निकले के जब सूरज के हम-राह;
कोई साहिब-नज़र आए मगर शायद न आए;
सभी को सहल-अंगारी हुनर लगने लगी है;
सरों पर अब ग़ुबार-ए-रह-गुज़र शायद न आए।