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Rakesh
12:00:00 AM 06 May, 2017
किसी के चेहरे को कब तक निगाह में रखूँ
सफ़र में एक ही मंज़र तो रह नहीं सकता
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#611 ADMIN
01:08:38 PM 11 Nov, 2016
प्रेस कॉन्फ्रेंस करते वक़्त मायावती जी
15 सेकेण्ड के लिए पर्चा ना देखे तो
चेहरे पर ऐसे हावभाव आ जाते है
मानो किसी ने 17 का पहाड़ा पूछ लिया हो।
#661 ADMIN
08:42:40 AM 11 Dec, 2016
📞 हैलो माँ !!
मैं रवि बोल रहा हूँ !!
कैसी हो 👵माँ....??
मैं.... मैं…. ठीक हूँ बेटे ये बताओ तुम और 👸बहू दोनों कैसे हो.....??
हम दोनों ठीक है !!
माँ आपकी बहुत याद आती है !! अच्छा सुनो माँ मैं अगले महीने इंडिया आ रहा हूँ तुम्हें लेने !!
क्या...?? हाँ माँ अब हम सब साथ ही रहेंगे....!!
नीतू कह रही थी 👵माज़ी को ✈ अमेरिका ले आओ वहाँ अकेली बहुत परेशान हो रही होंगी.!!
हैलो सुनरही हो 👵माँ....??
हाँ हाँ 👮बेटे "बूढ़ी आंखो से खुशी की अश्रुधारा बह निकली" बेटे और बहू का प्यार नस नस में दौड़ने लगा !!
जीवन के सत्तर साल गुजार चुकी सावित्री ने जल्दी से अपने पल्लू से आँसू पोंछे और बेटे से बात करने लगी !!
पूरे दो साल बाद बेटा घर आ रहा था !!
बूढ़ी सावित्री ने मोहल्ले भरमे दौड़ दौड़ कर ये खबर सबको सुना दी !!
सभी खुश थे की चलो बुढ़ापा चैनसे बेटे और बहू के साथ गुजर जाएगा !!
रवि अकेला आया था उसने कहा की माँ हमे जल्दी ही वापिस जाना है इसलिए जो भी 💴💰💵💷 रुपया पैसा किसी से लेना है वो लेकर रखलों और तब तक मे किसी प्रोपेर्टी डीलर से मकान की बात करता हूँ !!
मकान...?? माँ ने पूछा !!
हाँ माँ अब ये मकान बेचना पड़ेगा वरना कौन इसकी देखभाल करेगा !!
हम सबतो अब अमेरिका मे ही रहेंगे बूढ़ी आंखो ने मकान के कोने कोने को ऐसे निहारा जैसे किसी अबोध बच्चे को सहला रही हो !!
आनन फानन और औने-पौने दाम मे रवि ने 💒मकान बेच दिया !!
सावित्री देवी ने वो जरूरी सामान समेटा जिस से उनको बहुत ज्यादा लगाव था !!
👮रवि 🚕टैक्सी मँगवा चुका था !!
एयरपोर्ट पहुँचकर रवि ने कहा,👵”माँ तुम यहाँ बैठो मे अंदर जाकर सामान की जांच और बोर्डिंग और विजा का काम निपटा लेता हूँ" !!
ठीक है बेटे, "सावित्री देवी वही पास की बेंच पर बैठ गई" !!
काफी समय बीत चुका था !!
बाहर बैठी👵 सावित्री देवी बार बार उस दरवाजे की तरफ देख रही थी जिसमे रवि गया था लेकिन अभी तक बाहर नहीं आया !!
शायद अंदर बहुत भीड़ होगी सोचकर👵 बूढ़ी आंखे फिर से टकट की लगाए देखने लगती !!
अंधेरा हो चुका था !!
एयरपोर्ट के बाहरगहमागहमी कम हो चुकी थी।
माजी किस से मिलना है ??
एक💂 कर्मचारी नेवृद्धा से
पूछा....??
"मेरा बेटा अंदर गया था 📧 टिकिट लेने वो मुझे ✈ अमेरिका लेकर जा रहा है",सावित्री देबी ने घबराकर कहा !!
लेकिन अंदर तो कोई पैसेंजर नहीं है अमेरिका जाने वाली ✈ फ्लाइट तो ☀ दोपहर मे ही चली गई !!
क्या नाम था आपके बेटे का....??
कर्मचारी ने सवाल किया.....??
र......रवि सावित्री के चेहरे पे चिंता की लकीरें उभर आई !!
कर्मचारी अंदर गया और कुछ देर बाद बाहर आकर बोला माजी आपका बेटा 👮रवि तो अमेरिका जाने वाली ✈ फ्लाइट से कब का जा चुका !!
“क्या ??
👵वृद्धा कि आखो से💦 आँसुओं का सैलाब फुट पड़ा !!
बूढ़ी👵 माँ का रोम रोम कांप उठा !!
किसी तरह वापिस 💒घर पहुंची जो अब बिक चुका था !!
रात में 💒घर के बाहर चबूतरे पर ही ⛺ सो गई !!🌄
सुबह हुई तो👳दयालु मकान मालिक ने एक कमरा रहने को दे दिया !!
पति की 💴 पेंशन से 💒घर का किराया और खाने का काम चलने लगा !!
समय गुजरने लगा एक दिन मकान मालिक ने वृद्धा से पूछा ??
माजी क्यों नही आप अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ चली जाए अब आपकी उम्र भी बहुत हो गई अकेली कब तक रह पाएँगी !!
हाँ चली तो जाऊँ लेकिन कल को मेरा👮 बेटा आया तो..??
यहाँ फिर कौन उसका ख्याल रखेगा ....??
आखँ से आसू आने लग गए दोस्तों ....!!
माँ बाप का दिल कभी मत दुखाना 👬👫दोस्तों मेरी आपसे ये हाथ जोड़कर विनती है !!
ये पोस्ट को अपने 👬👫👭 दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे !!
धन्यवाद आप सबका जो आपने अपना कीमती समय निकाल कर इस पोस्ट को दिया !!
'माँ' तो 'माँ' होती है...!!
••••••••••••••••••••••
Maa Aur PaPa ki lambi Umar ke liye 5 Jno ko send kro Mujhe pata h aap Jarur kroge.
#11617 TIPU
12:00:00 AM 18 Feb, 2017
*"आपकी मुस्कुराहट आपके चेहरे*
*पर भगवान के हस्ताक्षर हैं,*
*उसको क्रोध करके मिटाने की अथवा*
*आँसुओं से धोने की कोशिश न करे।"*
*जीवन में कभी किसी से अपनी*
*तुलना मत करो, आप जैसे हैं,*
*सर्वश्रेष्ठ हैं, ईश्वर की हर*
*रचना अपने आप में*
*सब से उत्तम है,*
*अदभुत है*
*👏👏👏Good morning👏👏👏*
*🌻आप का दिन मंगलमंय 🌻*
#12113 Aman
12:00:00 AM 19 Feb, 2017
🍃 *जो व्यक्ति किसी दूसरे के चेहरे पर हँसी और जीवन में ख़ुशी लाने की क्षमता रखता है..*🍃
*_ईश्वर उसके चेहरे से कभी हँसी और जीवन से ख़ुशी कम नहीं होने देता।_*
🍃🍃 *सुप्रभात*🍃🍃
🌷 *आपका दिन शुभ हो*🌷
#21893 Rakesh
12:00:00 AM 13 May, 2017
टैगोर की कविता दे कर
उसने चिन्हित किया था शब्दों को
कि वो उस रानी का माली बनना चाहता है
सख़्त लड़की ने पढ़ा
सोचा कि मेरे बाग का माली बनकर
वो मेरे लिए
क्या-क्या करेगा...
खो गई सपनों में लड़की
कविता पढ़ते-पढ़ते
कि ठाकुर ने कितने रंग बिछाए हैं
जीवन में तरंगों के लिए
वो देखने लगी
माली के शब्द कि जब वो चलेगी
तो रास्तों में फ़ूल बिछा देगा ...ये माली
नौकर बन जाऐगा रानी का
रोज रंगीन दुनिया में घुमाऐगा
हो गई प्रेम में अंधी लड़की!
प्रेम में अंधी लड़की ने
आर देखा न पार
तोड़ डालीं सारी दीवारें, भूल गई अपना आपा
मज़बूर कर दिया घर- परिवार को
संगी- सहेलियों को
एकदम, अचानक कर दिया अचंभित
किसी को भी समझ आए
उससे पहले उड़ चली सात समुन्दर पार
बनने रानी
उस माली की
लेकिन भूल गई कि माली के हाथ में
कैंची भी होती है
पर कतरने की।
अब रोज़ माली उसके पर
थोड़े-थोड़े काटता है
घायल होती, अपने मुल्क के , घर के
एक एक चेहरे को
आँसू भरी आँखों से देखती है
प्रेम में अंधी लड़की
डरती रहती है जाने कल कौन सा पर
वो काटे...
रानी का सर्वेंट नहीं
सर्वेंट की रानी परकटी
कोसती है अपने आप को
तड़पती, छटपटाती है
काश!
वो कविता प्रेम भरी
उसने पढ़ी न होती
अंधी न बनी होती, कुछ होता या न होता
पर तो सलामत रहते ।
#21901 Rakesh
12:00:00 AM 13 May, 2017
वे ऊँचे-ऊँचे खूबसूरत "हाइवे"
जिन पर चलती हैं कारें--
तेज रफ़्तार से,कतारबद्ध, चलती कार में चाय पीते-पीते,
टेलीफ़ोन करते, 'टू -डॊर' कारों में,रोमांस करते-करते,
अमरीका धीरे-धीरे सांसों में उतरने लगता है।
मूँगफ़ली और पिस्ते का एक भाव
पेट्रोल और शराब पानी के भाव,
इतना सस्ता लगता है सब्जियों से ज्यादा मांस
कि ईमान डोलने लगता है।
मँहगी घास खाने से तो अच्छा है सस्ता मांस ही खाना
और अमरीका धीरे-धीरे स्वाद में बसने लगता है।
गर्म पानी के शावर
टेलीविजन के चैनल, सेक्स के मुक्त दृश्य,
किशोरावस्था से 'वीकेन्ड' में गायब रहने की स्वतंत्रता
'डिस्को' की मस्ती, अपनी मनमानी का जीवन,
कहीं भी, कभी भी, किसी के भी साथ
उठने- बैठने की आजादी......
धीरे-धीरे हड्डियों में उतरने लगता है अमरीका।
अमरीका जब साँसों में बसने लगा
तो अच्छा लगा, क्योंकि साँसों को पंखों की
उड़ान का अंदाजा हुआ।
और जब स्वाद में बसने लगा अमरीका
तो सोचा खाओ, इतना सस्ता कहाँ मिलेगा ?
लेकिन अब जब हड्डियों में बसने लगा है अमरीका,
तो परेशान हूँ।
बच्चे हाथ से निकल गए,वतन छूट गया!
संस्कृति का मिश्रण हो गया ।
जवानी बुढ़ा गई,सुविधाएँ हड्डियों में समा गईं
अमरीका सुविधाएँ देकर हड्डियों में समा जाता है!!
व्यक्ति वतन को भूल जाता है
और सोचता रहता है--
मैं अपने वतन को जाना चाहता हूँ।
मगर, इन सुखॊं की गुलामी तो मेरी हड्डियों में
बस गई है।
इसीलिए कहता हूँ कि
तुम नए हो,
अमरीका जब साँसों में बसने लगे,
तुम उड़ने लगो, तो सात समुंदर पार
अपनों के चेहरे याद रखना।
जब स्वाद में बसने लगे अमरीका,
तब अपने घर के खाने और माँ की रसोई याद करना ।
सुविधाओं में असुविधाएँ याद रखना।
यहीं से जाग जाना.....
संस्कृति की मशाल जलाए रखना
अमरीका को हड्डियों में मत बसने देना ।
अमरीका सुविधाएँ देकर हड्डियों में जम जाता है!
#21954 Afsar
12:00:00 AM 13 May, 2017
क्या आपकी कलम भी ठिठकी है
मेरे समय के कवियों, कहानीकारों और लेखकों
क्या आपको भी ये लगता है
इस विरोधाभासी समय में
कलम की नोंक पर
टँगे हुए कुछ शब्द जम गए हैं
जबकि रक्तचाप सामान्य से कुछ बिंदु ऊपर है,
ये कविताएँ लिखे जाने का समय तो बिल्कुल नहीं है
और तब जबकि अतिवाद के पक्ष में
गगनचुंबी नारे काबिज हों कविताओं पर,
ये दरअसल खीज कर, घरघराते गले से
उबल पड़ने को आतुर चीख को
लगभग अनसुना कर
जबरन खुद को
अखबार में खो जाने देने के दिन है
इन दिनों अनुमान लगाना कठिन है
कि ये पानी का स्वाद कड़वा है
या आपके अवसादग्रस्त मन की कड़वाहट
घुल गई है गिलास में
और तब विचारों को धकियाती कविताएँ
जगह बनाना चाहते हुए भी अक्सर
न्यूज चैनल की सुर्खियों पर लगभग
चौंकते हुए
जा बैठती है सोच के आखिरी छोर पर,
उन्हे मनाने की कवायदें भी
दम तोड़ने लगती हैं
घूरते हुए समाचारवादक के गले की उभरी नसें,
देखते हुए कोई ताजा स्टिंग ऑपरेशन
ये कहानियों के नायकों के कोपभवन में
चले जाने के दिन हैं
जब विचारों की तानाशाही हर कदम पर
आपको छूकर गुजरती है
और सोच अक्सर किसी अनचाहे चेहरे
के हावी होने से ग्रस्त है
ये दिन अनुवाद के तो हरगिज नहीं है
तब जब सारी व्यवस्था माँग करती है
सबसे सरलतम, निम्नतम मूकभाषी व्यक्ति की
सूनी, आँखों की भाषा का सटीक अनुवाद
ये कलमकारों के लगभग
युद्ध की विभीषिका से गुजरने के दिन हैं
जहाँ हर रोज मुठभेड़ में सामने आईना होता है
यह दरअसल अक्सर प्रत्याशियों के
'सुयोग्य' चुने जाने
'ठीकठाक' समझे जाने और
अंततः 'अयोग्य' पाए जाने के दिन हैं
इसे बीत जाने दो, पतझड़ की तरह कलमकारों
तब मिलकर साफ करने होंगे हमें
लोकतंत्र के खून के धब्बे,
व्यवस्था की चीखों की कालिख
और
मजलूमों को रौंदते महत्वाकांक्षाओं के
आगे ही बढ़ते पैरों के निशान
जागते रहो आज पूरी रात कि कल चुनी जानी है सरकार...
#24381 arman
12:00:00 AM 03 Jun, 2017
उसकी यादों को किसी कोने में छुपा नहीं सकता,
उसके चेहरे की मुस्कान कभी भुला नहीं सकता,
मेरा बस चलता तो उसकी हर याद को भूल जाता,
लेकिन इस टूटे दिल को मैं समझा नहीं सकता|
#27659 Afsar
12:00:00 AM 13 Jun, 2017
ये किसने गला घोंट दिया जिन्दादिली का,
चेहरे पे हँसी है कि जनाजा है हँसी का;
हर हुस्न में उस हुस्न की हल्की सी झलक है,
दीदार का हक मुझको है जल्वा हो किसी का;
रक्साँ है कोई हूर कि लहराती है सहबा,
उड़ना कोई देखे मिरे शीशे की परी का;
जब रात गले मिलके बिछड़ती है सहर से,
याद आता है मंजर तेरी रूखसत की घड़ी का;
उन आँखों के पैमानों से छलकी जो जरा सी,
मैखाने में होश उड़ गया शीशे की परी का;
रूस्वा है 'नजीर' अपने ही बुतखाने की हद में,
दीवाना अगर है तो बनारस की गली का।