Home
Forum
Login
Afsar
12:00:00 AM 08 May, 2017
कुरेद कुरेद कर बड़े जतन से हमने रखे हैं हरे
कौन चाहता है की उनका दिया कोई ज़ख्म भरे
Back
Forum
Related to this Post:
#21892 Rakesh
12:00:00 AM 13 May, 2017
जख़्म अभी हरे हैं अम्मा
मत कुरेदो इन्हें
पक जाने दो
लल्ली के बापू की कच्ची दारू
जैसे पक जाया करती है भट्टी में।
दाग़ अभी गहरे हैं बाबा
मत कुरेदो
इन्हें सूख जाने दो
रामकली के जूड़े में
लगे फूल की तरह।
जख़्म अभी गहरे हैं बाबा
छिपकली की कटी पूंछ की तरह
हो जाने दो कई-कई
रंगों में परिवर्तित।
क्षणभर तो रुको बाबा
झाँक लूँ अपने ही भीतर
बिछा लूँ
गुलाबी चादर से सज़ा बिस्तर
लगा लूँ सुर्ख़ गुलाब-सा तकिया
और रख लूँ
सिरहाने पानी की सुराही
और मद्धिम-मद्धिम आँच
पर जलती सुर्ख़
अंगीठी।
#28503 Rakesh
12:00:00 AM 14 Jun, 2017
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है;
तुम्ही कहो कि ये अंदाजे-गुफ्तगू क्या है;
न शोले में ये करिश्मा न बर्क में ये अदा;
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंद-ख़ू क्या है;
ये रश्क है कि वो होता है हमसुखन तुमसे;
वरगना खौफे-बद-अमोजिए-अदू क्या है;
चिपक रहा है बदन लहू से पैरहन;
हमारी जेब को अब हाजते-रफू क्या है;
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा;
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है;
बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता;
वगरना शहर में ग़ालिब कि आबरू क्या है।
#34811 arman
12:00:00 AM 15 Jul, 2017
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है;
तुम्ही कहो कि ये अंदाजे-गुफ्तगू क्या है;
न शोले में ये करिश्मा न बर्क में ये अदा;
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंद-ख़ू क्या है;
ये रश्क है कि वो होता है हमसुखन तुमसे;
वरगना खौफे-बद-अमोजिए-अदू क्या है;
चिपक रहा है बदन लहू से पैरहन;
हमारी जेब को अब हाजते-रफू क्या है;
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा;
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है;
बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता;
वगरना शहर में ग़ालिब कि आबरू क्या है।